एतदिच्छाम्यहं श्रोतुं परं कौतूहलं हि मे ।
महर्षे त्वं समर्थोऽसि ज्ञातुमेवंविधं नरम् ।।1.1.5।।
एतत् this,
इच्छामि am desirous,
अहम् I,
श्रोतुम् to listen,
परं great
कौतूहलम् curiosity,
हि - indeed, surely
मे my, (in me)
महर्षे O Maharshi,
त्वम् you,
समर्थ: असि are competent.
ज्ञातुम् to know,
एवंविधम् such type of (a person having these virtues),
नरम् man,
राम , हरि, पति, सखि, गुरु , दातृ , पितृ, रै गो ग्लौ
जलमुच वणिज राज मरुत पचत धीमत महत सुहृद राजन आत्मन श्वन
युवन मघवन पथिन करिन विश तादृश द्विष वेधस श्रेयस विद्वस
पुंस दोस लिहू
रमा मति नदी श्री स्त्री धेनु वधु भू स्वसृ मातृ
वाच स्रज शरद क्षुद सीमन अप ककुभ गिर
दिव निश दिश भास् आशिस उपानह
फल वारि दधि शुचि मधु गुरु दातृ
सुवाच असृज जगत ददत तुदत पचत महत हृद
नामन कर्मन अहन गुणिन वार तादृश सुत्विष
मनस हविस वपुस तास्तिवास अम्भोरुह
महर्षे त्वं समर्थोऽसि ज्ञातुमेवंविधं नरम् ।।1.1.5।।
एतत् this,
इच्छामि am desirous,
अहम् I,
श्रोतुम् to listen,
परं great
कौतूहलम् curiosity,
हि - indeed, surely
मे my, (in me)
महर्षे O Maharshi,
त्वम् you,
समर्थ: असि are competent.
ज्ञातुम् to know,
एवंविधम् such type of (a person having these virtues),
नरम् man,
पुंलिङ्ग:
राम , हरि, पति, सखि, गुरु , दातृ , पितृ, रै गो ग्लौ
जलमुच वणिज राज मरुत पचत धीमत महत सुहृद राजन आत्मन श्वन
युवन मघवन पथिन करिन विश तादृश द्विष वेधस श्रेयस विद्वस
पुंस दोस लिहू
स्त्रीलिङ्ग
रमा मति नदी श्री स्त्री धेनु वधु भू स्वसृ मातृ
वाच स्रज शरद क्षुद सीमन अप ककुभ गिर
दिव निश दिश भास् आशिस उपानह
नपुंसकलिङ्ग
फल वारि दधि शुचि मधु गुरु दातृ
सुवाच असृज जगत ददत तुदत पचत महत हृद
नामन कर्मन अहन गुणिन वार तादृश सुत्विष
मनस हविस वपुस तास्तिवास अम्भोरुह
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