श्रुत्वा चैतत्ित्रलोकज्ञो वाल्मीकेर्नारदो वच: ।
श्रूयतामिति चामन्त्त्र्य प्रहृष्टो वाक्यमब्रवीत् ।।1.1.6।।
श्रुत्वा च having heard,
एतत् these
त्रिलोकज्ञ: cognizant of three worlds,
वाल्मीके: Valmiki's,
नारद: Narada,
वच: words,
श्रूयताम् इति "Listen to me",
चामन्त्त्र्य च having invited,
प्रहृष्ट: was delighted,
वाक्यम् words,
अब्रवीत् spoke.
राम , हरि, पति, सखि, गुरु , दातृ , पितृ, रै गो ग्लौ
जलमुच वणिज राज मरुत पचत धीमत महत सुहृद राजन आत्मन श्वन
युवन मघवन पथिन करिन विश तादृश द्विष वेधस श्रेयस विद्वस
पुंस दोस लिहू
रमा मति नदी श्री स्त्री धेनु वधु भू स्वसृ मातृ
वाच स्रज शरद क्षुद सीमन अप ककुभ गिर
दिव निश दिश भास् आशिस उपानह
फल वारि दधि शुचि मधु गुरु दातृ
सुवाच असृज जगत ददत तुदत पचत महत हृद
नामन कर्मन अहन गुणिन वार तादृश सुत्विष
मनस हविस वपुस तास्तिवास अम्भोरुह
श्रूयतामिति चामन्त्त्र्य प्रहृष्टो वाक्यमब्रवीत् ।।1.1.6।।
श्रुत्वा च having heard,
एतत् these
त्रिलोकज्ञ: cognizant of three worlds,
वाल्मीके: Valmiki's,
नारद: Narada,
वच: words,
श्रूयताम् इति "Listen to me",
चामन्त्त्र्य च having invited,
प्रहृष्ट: was delighted,
वाक्यम् words,
अब्रवीत् spoke.
पुंलिङ्ग:
राम , हरि, पति, सखि, गुरु , दातृ , पितृ, रै गो ग्लौ
जलमुच वणिज राज मरुत पचत धीमत महत सुहृद राजन आत्मन श्वन
युवन मघवन पथिन करिन विश तादृश द्विष वेधस श्रेयस विद्वस
पुंस दोस लिहू
स्त्रीलिङ्ग
रमा मति नदी श्री स्त्री धेनु वधु भू स्वसृ मातृ
वाच स्रज शरद क्षुद सीमन अप ककुभ गिर
दिव निश दिश भास् आशिस उपानह
नपुंसकलिङ्ग
फल वारि दधि शुचि मधु गुरु दातृ
सुवाच असृज जगत ददत तुदत पचत महत हृद
नामन कर्मन अहन गुणिन वार तादृश सुत्विष
मनस हविस वपुस तास्तिवास अम्भोरुह
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